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क्या डूब जाएगा जोशीमठ शहर ?

उत्तराखंड:- जोशीमठ में मंडरा रहा खतरा फट रहीं हैं घरों की दीवारें और सड़कें स्थानीय लोग पलायन करने को हो रहे मजबूर 12 दिनों में 5.4 सेंटीमीटर तक धंसा जोशीमठ क्या डूब जाएगा जोशीमठ शहर, दीवरों पर दरारें, बेघर लोग और सड़क से निकलता पानी उत्तराखंड का शहर जोशीमठ जहां पर आपदा और तबाही दस्तक देती दिखाई दे रही है. 500 से ज्यादा मकानों में दरार आ चुकी है. जगह-जगह से पानी निकल रहा है. सड़कों पर भी दरारें साफ दिखाई दे रही है. इसे लेकर लोग सड़क पर उतर कर हाथों में मसाल लिए प्रोटेस्ट भी करने लगे हैं. लेकिन आइए पहले जान लेते हैं जोशीमठ से जुड़ी धार्मिकताय।। जोशीमठ शब्द ज्योतिर्मठ शब्द का अपभ्रंश रूप है जिसे कभी-कभी ज्योतिषपीठ भी कहते हैं। इसे वर्तमान 8वीं सदी में आदि शंकराचार्य ने स्थापित किया था। उन्होंने यहां एक शहतूत के पेड़ के नीचे तप किया और यहीं उन्हें ज्योति या ज्ञान की प्राप्ति हुई। यहीं उन्होंने शंकर भाष्य की रचना की जो सनातन धर्म के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण ग्रंथों में से एक है। शंकराचार्य के जीवन के धार्मिक वर्णन के अनुसार भी ज्ञात होता है कि उन्होंने इसके पास ही अपने चार विद्यापीठों में से एक की स्थापना की और इसे ज्योतिर्मठ का नाम दिया, जहां उन्होंने अपने शिष्य टोटका को यह गद्दी सौंप दी। ज्योतिर्मठ में ज्योतिर्मठ के पहले महंत शंकराचार्य बने। जोशीमठ को गेटवे ऑफ हिमालय अर्थात (हिमालय का द्वार) भी कहा जाता है। यह केदारनाथ धाम तथा बद्रीनाथ धाम के बीच में पड़ता है। जोशीमठ देवभूमि उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है। यह हिंदुओं की प्रसिद्ध पीठ है। लेकिन अखिर क्यूँ जोशीमठ के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। 6150 फीट की ऊंचाई पर बसा जोशीमठ बद्रीनाथ जाने वाले रास्ते में पड़ता है। यह धार्मिक और पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान है। लेकिन संभावना जताई जा रही है कि यहां पर बड़ी आपदा आ सकती है। 1976 में ही उत्तराखंड के जोशीमठ की भौगोलिक स्थिति को लेकर चेतावनी जारी की थी। लेकिन इसे अनदेखा कर दिया गया नतीजा अब घरों की दीवारो व छतों पर दरारे पड़ रही है। यह दिन-ब-दिन खिसक रहा है। जोशीमठ भूकंप से ज्यादा भूस्खलन के प्रति संवेदनशील है। यह प्राचीन भूस्खलन से आई मिट्टी पर बसा हुआ कस्बा है। मलवे की मट्टी मजबूत नहीं होती है। ऐसे में जोशीमठ के नीचे की जमीन स्पंज जैसे खोखली हो चुकी है। बारिश का पानी और घरों के गंदे पानी की निकासी की सही व्यवस्था नहीं हो पाना मुख्य कारण है जिससे पानी जमीन के अंदर रिसता है और मिट्टी की ऊपरी परत कमजोर होती जाती है। लगातार पानी रिसने की वजह से मिट्टी मे मौजूद चिकने खनिज बह जाते हैं और जमीन कमजोर होते चली जाती है। ऊपर से लगातार हो रहा निर्माण कार्य भार को बढ़ा रहा। 2021 में हुई धौलीगंगा, ऋषि गंगा हादसे की वजह से जो मलवा आया उससे जोशीमठ के निचले हिस्से में अलकनंदा नदी के बाएं तट पर बहुत ज्यादा नुकसान हुआ। 1976 में मिश्रा समिति की रिपोर्ट में बताया गया था कि जोशीमठ एक प्राचीन भूस्खलन पर स्थित है। जो चट्टान नहीं बल्कि रेत और पत्थर के जमाव पर टिका है। अलकनंदा और धौलीगंगा नदियां भूस्खलन को टिगर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। उचित जल निकासी की सुविधा का अभाव है जो भूस्खलन का कारण बनता है जिससे पानी का रिसाव और मिट्टी का क्षरण होता है वहीं लोग यह भयानक मंजर देख कर अपने घरों से पलायन करने के लिए मजबूर हो रहे हैं आखिरी बार अपने घर को देख कर भावुक होते हुए अपने आंसुओ को नहीं रोक पा रहे हैदराबाद स्थित इसरो के एनआरएससी ने धंसते क्षेत्रों की सेटेलाइट तस्वीरें जारी की हैं. तस्वीरों में सेना के हेलीपैड और नरसिम्हा मंदिर सहित पूरे इलाके को संवेदनशील क्षेत्र के तौर पर चिह्न्ति किया गया है. रिपोर्ट के मुताबिक, अप्रैल से नवंबर 2022 के बीच जोशीमठ 8.9 सेमी तक धंस चुका था, लेकिन 27 दिसंबर, 2022 और 8 जनवरी, 2023 के बीच, भू-धंसाव की गति में वृद्धि हुई और इन 12 दिनों में शहर 5.4 सेंटीमीटर तक धंस गया है. वैज्ञानिक अभी भूमि धंसने के बाद घरों और सड़कों में दिखाई देने वाली दरारों का अध्ययन कर रहे हैं. उत्तराखंड हाईकोर्ट ने गुरुवार को राज्य सरकार से जोशीमठ में निर्माण पर सख्ती से रोक लगाने का कहा है. वहीं हाईकोर्ट ने सरकार को इस मामले को देखने के लिए स्वतंत्र विशेषज्ञों की एक समिति बनाने का निर्देश दिया है.

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