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शहीद मेजर मोहित शर्मा की पुण्यतिथि पर उनको शत शत नमन

शहीद मेजर मोहित शर्मा की पुण्यतिथि पर उनको शत शत नमन 11 दिसंबर 1999 को भारतीय सेना में हुए थे भर्ती मेजर मोहित शर्मा को मरणोपरांत अशोक चक्र से सम्मानित किया गया मेजर से इफ्तिखार भट्ट बनकर आतंकवादियो के साथ रहकर उनका खात्मा किया था गोली लगने के बावजूद मेजर मोहित शर्मा आतंकवादियों से डटकर मुकाबला करते रहे अंततः 21 मार्च 2009 को अपनी मां की रक्षा करते हुए उसी की गोद पर सर रखकर हमेशा के लिए सो गए देशभक्ति की बात आते ही हमे हमारे शहीद वीर जवानों की याद आने लगती है जैसे की कारगिल युद्ध के वीर जवान कप्तान विक्रम बत्रा समेत हमारी धरती कई शहीद वीर जवानों की कर्जदार हैं जी हां आज हम बात करेंगे उस वीर सपूत की जिसने जासूस बनकर आतंकवादियो की धरती पर उनके साथ रहकर उनका खात्मा किया था ऐसे ही एक वीर जवान की गाथा आज हम आपके सामने पेश करेंगे। हरियाणा की धरती पर जन्में शहीद मेजर मोहित शर्मा... अपनी वीरता और शौर्यता के लिए मशहूर अशोक मरणोपरांत अशोक चक्र से सम्मानित मेजर मोहित शर्मा के जीवनी के बारे मे जानेंगे। भारत माता के जाँबांज सपूत मेजर मोहित शर्मा उन लोगो में से थे, जिन्हे खुद से ज्यादा देश से प्यार था। मेजर मोहित शर्मा का जन्म आज के ही दिन यानी 13 जनवरी 1978 को रोहतक हरियाणा में हुआ था। मेजर मोहित शर्मा ने अपनी स्कूली शिक्षा प्राप्त करने के बाद उनके घर वालो ने उनका एडमिशन महाराष्ट्र के एक इंजियरिंग कॉलेज में करा दिया लेकिन जिसके दिल और दिमाग में देशभक्ति का जुनून बसा हो उसका ध्यान इंजियरिंग में कहा ही लगना था जी हां सही समझे आप इंजियरिंग कॉलेज में रहकर उन्होंने एनडीए की तैयारी कर सभी डिफेंस एग्जाम्स क्लियर कर 11 दिसंबर 1999 को भारतीय सेना में भर्ती हुए। लेकिन इस जवान का दिल सिर्फ सेना भर्ती से नही भरा और इसके दिमाग में अब पैरा कमांडो बनने की चिंगारी आग पकड़ चुकी थी वीर जवान का जुनून और मेहनत रंग लाई और सेना भर्ती के 4 वर्ष बाद उन्हें पैरा कमांडो की कमान सौंपी गई। पैरा कमांडो बनने के बाद उन्हें कश्मीर में स्थापित किया गया। साल 2004 में एक ऑपरेशन के दौरान मेजर मोहित शर्मा ने वो कर दिखाया जिसे लोगो ने सिर्फ कहानियों में ही पड़ा था जी हां उस समय के दो खूंखार आतंकवादियो का खात्मा करने के लिए शर्मा जी मेजर से इफ्तिखार भट्ट बनकर उन आतंकवादियो को अपनी बनाई कहानी में फसाकर उनके ही साथ रहकर भारतीय जवानों को मारने की तरकीफ बनाया करते। मेजर मोहित ने हिजबुल मुजाहिद्दीन में इफ्तिखार भट्ट बनकर घुसपैठ की थी. उन्होंने हिजबुल आतंकियों को इस कदर भरोसे में ले लिया था कि कोई भी उनपर शक नहीं कर पाया था और उन्होंने दो आतंकियों को मौत के घाट उतार डाला था. इस ऑपरेशन के दौरान एक आतंकी को मेजर पर शक हो गया था, इस पर मेजर ने जवाब दिया, ‘अगर तुम्हें शक है तो गोली मार दो और अपनी एके-47 जमीन पर गिरा दी.' यह देखकर आतंकवादी कन्फ्यूज हो गए. इसी दौरान मेजर मोहित ने अपनी 9 एमएम की पिस्तौल को लोड किया और दोनों आतंकियों को देखते ही देखते ढेर कर दिया. इसके बाद वहां से भागकर पास के ही आर्मी कैंप में सुरक्षित वापस लौट आए। इसी के साथ उनको इसी साल सेना पदक से भी नवाजा गया। बात करेंगे उस पल की जब से मेजर मोहित शर्मा को अपने साथियों के लिए जान निछावर करने के लिए जाना जाने लगे । और साथ ही उन्होंने यह वाक्या भी सिद्ध कर दिया कि "100 साल जीने के लिए 100 साल जीवित रहना जरूरी नही बल्कि कोई एक ऐसा काम कर जाओ की लोग तुम्हे 100 साल तक याद करे" 2009 में आम चुनाव होने वाले थे, उससे ठीक पहले आतंकवादी गतिविधियां भी काफी बढ़ गयी थी, जिसके चलते जगह-जगह एंटी-टेरर ऑपरेशन चलाये जा रहे थे और इसी बीच 4 आतंकियों को मार गिराया गया। इन सभी गतिविधियो के बीच ख़ुफ़िया एजेंसी ने सूचना दी कि कश्मीर के कुपवाड़ा जिले में हफ्रुदा के जंगलों में आतंकवादियों का एक बड़ा दल छुपा हुआ है। यह काम मेजर मोहित शर्मा के वन पैरा एसएफ और राष्ट्रीय राइफल्स के सेकेंड बटालियन को सौंपा गया। ऑपरेशन के समय मेजर मोहित शर्मा ने होली के लिए छुट्टी की अर्जी दी थी और उसे उनके कमांडिंग ऑफिसर ने मंजूर कर ली थी लेकिन उसी समय मेजर मोहित शर्मा के एक साथी के चचेरे भाई का निधन हो गया और उनके साथी ने कमांडिंग ऑफिसर से 2 दिन की छुट्टी मांगी लेकिन ऑफ़िसर ने यह कहते हुए की अभी स्टाफ की कमी है और छुट्टी नामंजूर कर दी। यह बात जब मोहित शर्मा को पता चली तो उन्होंने अपने कमांडिंग अफसर से रिक्वेस्ट की उनकी छुट्टी को कैंसल कर उनके साथी को छुट्टी की मंजूरी देदे। मेजर मोहित शर्मा ने अपनी छुट्टी को 1 महीने के लिये टाल दिया अगर वे छुट्टी नहीं टालते तो शायद आज जिन्दा होते। तभी 21 मार्च 2009 को मेजर मोहित शर्मा ब्रावो आक्रमण टीम के साथ हफ्रुदा के जंगलों में निकल पड़े। इसी ऑपरेशन के दौरान मोहित और उनकी टोली को आतंकवादियों ने घेर लिया दोनों तरफ से गोलीबारी शुरू हो गयी और तभी मोहित शर्मा के एक साथी को गोली लग गयी उसे बचाते हुए मोहित शर्मा ने कमान सम्भाली और साथी को वहां से निकाला। साथी को बचाने के दौरान ही मेजर मोहित शर्मा भी घायल हो गये थे, उन्हे भी गोलियाँ लग गयी थी। गोली लगने के बावजूद मेजर मोहित शर्मा आतंकवादियों से डटकर मुकाबला करते रहे और अंततः देश के लिए 21 मार्च 2009 को शहीद हो गये। हिंदुस्तान का एक और बेटा अपनी मां की रक्षा करते हुए उसी की गोद पर सर रखकर हमेशा के लिए सो गया ,,, मीडिया ब्रेक इन जैसे शहीद वीर जवानों को शत शत नमन करता हैं और उस मां को सैल्यूट करता है जो इन वीर जवानों को अपने कोख से जन्म देती है।।

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