:- मीडिया ब्रेक की पहल का हिस्सा बनिये
:- आपसे जुड़ी विवेचना निष्पक्ष हो यह आपका अधिकार है।
:- आइये जानते हैं केश डायरी का "अधूरा सच"
हमारे देश में जांच अधिकारी अर्थार्त विवेचना करने वाले अधिकारी को न्याय की प्रथम सीढ़ी माना जाता है किसी भी मुकदमें की जांच, विवेचक को निष्पक्षता के साथ करनी होती है जांच अधिकारी को ऐसा करने के लिये असीमित शक्तियां प्राप्त होती हैं लेकिन क्या विवेचक ने निष्पक्षता के साथ अपना विवेचक धर्म निभाया या फिर दबाव, प्रभाव, लोभ, द्वेष के कारण विवेचक अपने मूल कर्तव्य दायित्व का निर्वाहन करने में विफल रहे। यह प्रत्येक उस व्यक्ति के मन का अहम सवाल होता है जिसके विरुद्ध एफआईआर दर्ज होती है या फिर एफआईआर दर्ज कराने वाले मुकदमा वादी के मन में भी ऐसा ही यक्ष प्रश्न अक्सर आता रहता है "मीडिया ब्रेक" ऐसे ही सवालों का जवाब तलासने के लिये केश डायरी की उन बारीकियों का विश्लेषण करेगा जिससे मुकदमा वादी या नामित आरोपी का सीधा सरोकार होगा और जांच करने वाले जांच अधिकारी भी मीडिया ब्रेक द्वारा की जा रही तथ्यात्मक पड़ताल की जद में होंगे।
"केश डायरी" का.... अधूरा सच (भाग -1)
मीडिया ब्रेक की पड़ताल में आज मुकदमा अपराध संख्या- 255/2023 थाना हनुमंत विहार, धारा 420,406,504,506,307 आईपीसी जनपद कानपुर नगर राज्य उत्तर प्रदेश पर चर्चा होगी। मुकदमें से जुड़े कुछ बेहद अहम पहलुओं पर फोकस होगा जिससे यह समझने में आसानी होगी कि क्या शिकायत प्राप्त होने से लेकर एफआईआर दर्ज होने और विवेचना समाप्ति तक मुकदमें की विवेचना में सब कुछ निष्पक्षता के साथ किया किया गया या फिर माजरा कुछ और ही रहा।
शिकायतकर्ता ने कानपुर पुलिस आयुक्त के सामने खुद उपस्थित होकर दिनांक 08/07/2022 को अपने साथ घटित अपराधिक घटना का हवाला देते हुये लगभग एक वर्ष बाद दिनांक 10/07/2023 प्रार्थना पत्र दिया। उक्त प्रार्थना पत्र में शिकायतकर्ता ने अपने साथ घटित हुयी अपराधिक घटना का उल्लेख करते हुये आरोपियों के विरुद्ध एफआईआर दर्ज कराने का अनुरोध किया। शिकायतकर्ता के प्रार्थना पत्र पर पुलिस आयुक्त ने जांचकर कार्यवाही करने के निर्देश सम्बन्धित अधिकारी को दिये। पुलिस आयुक्त के निर्देशानुसार सम्बन्धित जांच अधिकारी ने प्रारंभिक जांच की और आरोप सत्य प्रतीत होने का हवाला देते हुये थाना हनुमंत विहार पुलिस को एफआईआर दर्ज करने के निर्देश जारी कर दिये जिसके परिणाम स्वरूप आरोपियों के विरुद्ध एफआईआर संख्या 255/23 दर्ज हो गयी और विवेचना अधिकारी नामित करते हुये शुरू कर दी गयी। मुकदमें की विवेचना करने वाले अधिकारियों ने अपनी जांच में प्रमुख रूप से धारा 307 आईपीसी को हटाते हुये अन्य समस्त धाराओं में आरोप पत्र माननीय न्यायालय में प्रेषित कर दिया।
मीडिया ब्रेक की पड़ताल के अहम बिंदु
:- शिकायतकर्ता के तौर पर पुलिस आयुक्त को प्रार्थना पत्र किसने दिया ?
:- शिकायतकर्ता मूल रूप से कहां निवास करता है और उसका स्थायी,अस्थायी और वर्तमान पता क्या है ? शिकायत में घटना किस स्थान पर घटित होने दिखया गया है और क्या शिकायतकर्ता घटना स्थल पर खुद मौजूद था अथवा नहीं ?
:- शिकायतकर्ता ने पुलिस आयुक्त अथवा प्रारंभिक जांच करने वाले अधिकारी, एफआईआर दर्ज होते समय और एफआईआर की मूल प्रति हनुमंत विहार थाने से प्राप्त करते समय अपना पहचान पत्र कौन सा दिया था ?
:- विवेचना प्रारम्भ होते ही मुकदमा वादी के द्वारा घटना स्थल का नक्सा नजरी बनवाते समय मुकदमा विवेचक को अपनी पहचान के लिये कौन सा परिचय प्रमाण पत्र दिया गया और क्या मुकदमा वादी द्वारा दिये गये परिचय पत्र का सत्यापन मुकदमा विवेचक ने किया ?
मीडिया ब्रेक की पड़ताल :-
पुलिस आयुक्त को शिकायती प्रार्थना पत्र देने वाला शिकायतकर्ता अजय शर्मा पुत्र राम मूर्ति शर्मा था शिकायतकर्ता ने ख़ुद का स्थायी पता 156A देवकी नगर थाना नौबस्ता शिकायती प्रार्थना पत्र पर अंकित करते हुये घटना का स्थल 156A देवकी नगर का दरवाजा लिखवाया था अर्थार्त मुकदमा वादी के द्वारा घटना 156A देवकी नगर थाना नौबस्ता, के दरवाजे पर घटित होना दर्शाया था जो कि एफआईआर के कॉलम में भी लिखा हुआ है। मीडिया ब्रेक टीम ने शिकायत की कॉपी, एफआईआर की कॉपी और केश डायरी और एफआईआर में दिखाये गये घटना स्थल का बेहद बारीकी से अध्ययन किया तो चौकाने वाले तथ्य सामने आये. 156A देवकी नगर थाना नौबस्ता में जो अजय शर्मा पुत्र राम मूर्ति शर्मा निवास करते हैं वास्तव में उनके द्वारा मु०अ०सं- 255/2023 थाना हनुमंत विहार में कोई भी एफआईआर दर्ज नहीं करायी गयी बल्कि उनके नाम और वल्दियत अर्थार्त पिता का नाम सेम होने का फ़ायदा उठाते हुये उनके कथित रिश्तेदार (जो कभी 156A देवकी नगर थाना नौबस्ता के पते पर रहा ही नहीं) ने उक्त एफआईआर दर्ज करा दी। मीडिया ब्रेक टीम ने अपनी पड़ताल को और आंगे बढ़ाया तो पता चला कि मुकदमा विवेचक ने नक्सा नक्सी 128/19D ब्लॉक एच-1, किदवई नगर थाना किदवई नगर का बनाया है जो कि घटना स्थल था ही नहीं। कुल मिलाकर मीडिया ब्रेक टीम ने पाया कि मुकदमा वादी अजय शर्मा ने कानपुर पुलिस आयुक्त,प्रारंभिक जांच करने वाले सम्बन्धित अधिकारी,थाना अध्यक्ष हनुमंत विहार उदय प्रताप ,एफआईआर राइटर के साथ धोखाधड़ी कर एफआईआर दर्ज करायी और एफआईआर की मूल कॉपी थाने से प्राप्त कर ली या यूं कहें कि उक्त समस्त अधिकारी शिकायतकर्ता अजय शर्मा के फोटोयुक्त पहचान पत्र का सत्यापन नहीं कर सके जिस कारण शिकायतकर्ता अजय शर्मा ने कूटरचित फर्जी पते का निवासी बनकर एफआईआर दर्ज कराने में सफल रहा। दिलचस्प बात यह है कि घटना स्थल का थाना क्षेत्र एफआईआर में थाना नौबस्ता दर्शाया गया, मुकदमा वादी का निवास स्थल भी थाना नौबस्ता दर्शाया गया परंतु एफआईआर को थाना हनुमंत विहार में दर्ज किया गया जो कि सम्बन्धित अधिकारियों की भूमिका को संदेह के दायरे में लाता है। उक्त मुकदमें की विवेचना करने वाले मुकदमा विवेचक ने नक्सा नजरी संजय वन पुलिस चौकी थाना किदवई नगर अंतर्गत आने वाले 128/19D ब्लॉक एच-1 किदवई नगर का बनाते हुये चश्मदीदो के बयान भी दर्ज किये जबकि तहरीर और एफआईआर के अनुसार घटना स्थल थाना नौबस्ता क्षेत्र का बताया गया।
उपरोक्त तथ्यात्मक विश्लेषण से समझा जा सकता है कि मुकदमें की विवेचना करने वाले विवेचकगण सब इंस्पेक्टर नीरज राजपूत और कुलबीर मीणा ने निष्पक्षता के साथ विवेचक धर्म का पालन नहीं किया और मुकदमा वादी को लाभ पहुचाने के उद्देश्य की पूर्ति करते हुये आरोपीगणों के विरुद्ध आरोप पत्र माननीय न्यायालय में दाखिल किया गया।
"विवेचक निष्पक्ष होता है ऐसा माना जाता है लेकिन विवेचक की दोष पूर्ण विवेचना किसी निर्दोष को सालों साल कोर्ट कचहरी में तो उलझाती ही है अपितु माननीय न्यायालयों में सुनवाई की कतार में लगे मुकदमों की संख्या में इजाफ़ा का भी प्रमुख कारण है" पदस्त उच्च अधिकारियों को ऐसी दोषपूर्ण विवेचना का संज्ञान लेने में निःसंकोच दिलचस्पी दिखानी चाहिये क्योंकि भारतीय न्याय शास्त्र भी यही कहता है कि भले चाहे कितने भी दोषी बच जाये लेकिन किसी निर्दोष को सजा का सामना न करना पड़े।

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