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"होमगार्डो का दर्द ए करोना"


:- कानपुर पुलिस में कोरोना का खौफ़,

:- कानपुर के होमगार्ड हैं एंटी कोरोना,

:- पुलिस चाट रही मलाई,होमगार्ड के साथ बेवफाई,

:- बड़ा भेद-भाव है भाई ।


कानपुर में अब तक लगभग 25 पुलिस कर्मी कोरोना का शिकार हो चुके हैं जिसके बाद से पुलिस महकमें में कोरोना दहशत है आलम कुछ ऐसा है कि प्रवासी लोगों को कानपुर से बाहर अन्य जनपदों में छोड़ने जाने वाली बसों में एक भी पुलिस कर्मी जाने को तैयार नही यह प्रवासी लोग सिर्फ और सिर्फ होमगार्डो के भरोसे ही अपने जनपद पहुचेंगे या फिर यू कहे कि कोरोना से डरा कानपुर पुलिस महकमा अपने सिपहसालारों का बचाव करते हुये सिर्फ और सिर्फ होमगार्डों को ही अदृश्य कोरोना से युद्ध करने के लिये आंगे कर रहा है।

उत्तर प्रदेश शासन के आदेश पर कानपुर महानगर में लॉक डाउन के दौरान फसे विभिन्न जनपदों के लोगों को उनके गृह जनपद रोडवेज बस के माध्यम से पहुचाने का निर्णय लिया गया है इसी क्रम में कानपुर के झकरकटी बस अड्डे से आज कई बसें रवाना हुई हैं इन बसों में सुरक्षा की दृष्टि से प्रत्येक बस में एक होमगार्ड बतौर ड्यूटी पर तैनात कर भेजा गया है जबकि अदृश्य कोरोना से युद्ध के दौरान स्वर्गवासी होने पर होमगार्डों को कोई बीमा सुरक्षा कवच प्रदान नही किया गया है इसके अतिरिक्त ड्यूटी कर रहे होमगार्डों को किसी भी प्रकार का अन्य कोई भत्ता भी नही दिया जाता जबकि पुलिस कर्मियों को सरकार की तरफ से बीमा सुरक्षा कवच सहित अन्य सुविधायें प्रदान की गई हैं और इनकी तनख्वाह भी होमगार्डों से कही अधिक है ऐसे में अदृश्य कोरोना से लड़ने के लिये सिर्फ और सिर्फ होमगार्डों को आंगे किया जाना बेहद भेदभाव पूर्ण है।
अदृश्य कोरोना से लड़ने वाले वास्तविक योद्धा तो उत्तर प्रदेश के होमगार्ड हैं जिन्हें सिर्फ कोल्हू का बैल मात्र समझा जाता है सरकार को चाहिये कि होमगार्डो को भी पुलिस महकमें की ही तरह सुविधायें प्रदान की जाये।

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