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"कानपुर पुलिस की विवेचना का घिनौना सच"


- मीडिया ब्रेक का बड़ा खुलासा,

- बतौर मुकदमा विवेचक क्षेत्राधिकारी आलोक सिंह के कारनामें पर बड़ा खुलासा,

- सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को किया दरकिनार,

- विवेचना के नाम पर किया बड़ा खेल,

- कानपुर के बाबूपुरवा कोतवाली में दर्ज अपराध संख्या 188/19 की विवेचना में किया खेल,

- बाबूपुरवा सर्किल के पद पर आसीन होते ही सुरु कर दिया था विवेचना में खेल,


- क्षेत्राधिकारी बाबूपुरवा का चार्ज संभालने से पहले की तारीख़ में काट दिये केश डायरी के 22 पर्चे,

- 01 जनवरी 2020 को बतौर क्षेत्राधिकारी बाबूपुरवा का आलोक सिंह ने  संभला था चार्ज,

- पद संभालने की दिनांक से पहले काट दिये केश डायरी के पन्ने,

- 1 या 2 नही बल्कि बैक डेट में काट दिये 22 पर्चे,

- आलोक सिंह ने बतौर विवेचक बैक डेट में काटा पहला पर्चा दिनांक 30 जून 2019 को।

- दिनांक 30 जून 2019 से 30 दिसंबर 2019 के मध्य काट दिये बैक डेट में केश डायरी के 22 पर्चे,

-  केश डायरी का पर्चा नम्बर 6 दिनांक 28 जून 2019 को काटा था बतौर विवेचक सब स्पेक्टर प्रमोद कुमार यादव ने,

- केश डायरी का पर्चा नम्बर 7 दिनांक 30 जून 2019 को बतौर विवेचक क्षेत्राधिकारी बाबूपुरवा आलोक सिंह ने दिया काट,

- इसी तरह आलोक सिंह ने कुल 22 पर्चे बैक डेट में किता कर किया विवेचना में बड़ा खेल,


- विवेचना में अपर जिला अधिकारी के पत्र को भी नही किया सम्मिलित,

- सफाई कर्मचारी आयोग में सब-स्पेक्टर प्रमोद यादव और CO मनोज गुप्ता द्वारा दिये गये बयान भी विवेचना से नदारत,

- आलोक सिंह द्वारा रचित विवेचना के अनुसार मनोज गुप्ता क्षेत्राधिकारी बाबूपुरवा के पद पर कभी रहे ही नही,

- एसपी साउथ दीपक भूकर को भी रखा अंधेर में,

- दीपक भूकर से विवेचना सीन करा दाख़िल कर दी SC/ST अदालत में।




आप ने अक्सर लोगों के मुंह से सुना होगा कि जांच में दूध का दूध और पानी का पानी हो जायेगा। लेकिन जरा ठहरिये अब हम आपको एक ऐसे जांच अधिकारी के बारे में मय तथ्य मय पुख़्ता सबूत बताते है जो खुद मिलावट करने में ही सिर्फ माहिर नही है बल्कि अपने विभागीय उच्च अधिकारियों सहित मा० न्यायालय को भी प्योर मिलावटी आरोप पत्र प्रेषित करने में माहिर है।


कानपुर के बाबूपुरवा कोतवाली क्षेत्र अंतर्गत आने वाली एनएलसी पुलिस चौकी के ठीक सामने हो रही सीवर सफाई के दौरान ज़हरीली गैस की चपेट में आने से 2 सफ़ाई कर्मियों की मौत दिनांक 19 जून 2019 को अस्पताल ले जाते वख्त हो गयी थी घटित घटना के संदर्भ में घनश्याम द्विवेदी (महाप्रबंधक- गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई,उ०प्र० जल निगम) की तहरीर पर कानपुर के बाबूपुरवा कोतवाली में ठेकेदार सतीश चंद सचान के विरुद्ध आईपीसी की धाराओं में एफआईआर दर्ज कर प्रकरण की विवेचना एनएलसी पुलिस चौकी प्रभारी प्रमोद कुमार यादव को दे दी गयी। विवेचना के दौरान शत्रुघ्न सिंह (परियोजना प्रबंधक), राघवेंद्र सिंह (सहायक परियोजना प्रबंधक) गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई के अधिकारियों के नाम बतौर आरोपी अपराध संख्या 188/19 में सम्मिलित कर लिया गया।
 प्रारंभिक विवेचना में विवेचक सब-स्पेक्टर प्रमोद कुमार यादव को यह ज्ञात हुआ कि मृतक सफ़ाई कर्मी में से एक मृतक अनुसूचित जनजाति का है अतः विवेचक प्रमोद यादव द्वारा SC/ST की धारा बढ़ाकर नियमानुसार विवेचना क्षेत्राधिकारी बाबूपुरवा को हस्तानांतरित कर दी। सब-स्पेक्टर प्रमोद यादव ने जब उक्त विवेचना क्षेत्राधिकारी बाबूपुरवा को हस्तांतरित की उस समय मनोज गुप्ता क्षेत्राधिकारी बाबूपुरवा के पद पर थे जो कि दिनांक 29 दिसंबर 2019 तक बाबूपुरवा क्षेत्राधिकारी के पद पर काबिज़ रहे। दिनांक 01 जनवरी 2020 को तत्कालीन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक अनंतदेव तिवारी के आदेशानुसार  क्षेत्राधिकारी बाबूपुरवा मनोज गुप्ता का स्थानांतरण गोविंद नगर सर्किल कर दिया गया और गोविंद नगर सर्किल के क्षेत्राधिकारी रहे आलोक सिंह को बाबूपुरवा सर्किल का चार्ज दे दिया गया या फ़िर यू कहे कि दो क्षेत्राधिकारियों को एक दूसरे के स्थान पर परिवर्तित कर दिया गया। चार्ज पर आते ही आलोक सिंह ने बतौर विवेचक अपराध संख्या 188/19 की विवेचना नियमानुसार गृहण कर विवेचना सुरु कर दी या फिर यू कहें कि खेल सुरु कर दिया। *01 जनवरी 2020 को बाबूपुरवा क्षेत्राधिकारी का चार्ज संभालने वाले आलोक सिंह ने 30 जून 2019 को केश डायरी का पर्चा नम्बर 7 काट दिया फ़िर इसी तरह एक के बाद एक कुल 22 पर्चे बैक डेट में काट दिये। उक्त विवेचना में ठेकेदार सतीश चंद सचान पर आरोप सिद्ध बताते हुये कानपुर की SC/ST अदालत में आरोप पत्र दाखिल कर दिया गया जिसे सम्बंधित न्यायालय ने स्वीकार भी कर लिया।* जबकि मुक़दमे के अन्य शेष आरोपी शत्रुघ्न सिंह (परियोजना प्रबंधक) राघवेंद्र सिंह (सहायक परियोजना प्रबंधक) गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई,उ०प्र० जल निगम के विरुद्ध अभी भी विवेचना प्रचलित है। आरोपी ठेकेदार सतीश चंद सचान के सम्बंध में जो आरोप पत्र SC/ST न्यायालय में दाखिल किया गया उसे सम्बंधित न्यायालय में दाखिल करने से पूर्व *वर्तमान कानपुर एसपी साउथ दीपक भूकर के संज्ञान में भी विवेचक DSP आलोक सिंह के द्वारा लाया गया था जिसकी प्रमाणिकता आरोप पत्र में स्पष्ट अंकित दीपक भूकर के हस्ताक्षर से है।*

*आरोपी पक्ष का CO आलोक सिंह पर संगीन आरोप* - 

आरोपी ठेकेदार सतीश चंद सचान के परिजन दिनेश चंद सचान ने मुकदमा विवेचक उर्फ़ क्षेत्राधिकारी आलोक सिंह पर गंभीर आरोप लगाते हुये कहा कि जब घटना घटित हुई थी *उस समय कानपुर के एसएसपी अनंतदेव तिवारी थे और क्षेत्राधिकारी बाबूपुरवा मनोज गुप्ता थे जो सम्बंधित केश के विवेचक भी थे जब दौरान विवेचना उनकी भेंट क्षेत्राधिकारी मनोज गुप्ता से हुई तो उन्होंने खुलकर कहा था कि यह प्रकरण मैनुअल स्कैबेंजर्स रिहैबिलिटेशन एक्ट 2013 के अंतर्गत आता है जिसका उद्देश्य सिर्फ़ और सिर्फ पीड़ित सीवर सफ़ाई कर्मी के परिजनों को त्वरित छतिपूर्ति दिलाना है लेकिन एसएसपी साहब 10 लाख रुपये की डिमांड कर रहे हैं आप लोगों पर दबाव बनाने के लिये कहा गया है जो कि हम नही कर सकते। शायद इसी वजह से मनोज गुप्ता ने अपने विवेचक रहते केश डायरी के पूरे पर्चे नही काटे। मनोज गुप्ता का हम पर दबाव न बना पाना ही उनके स्थानांतरण की असली वजह थी जब आलोक सिंह को क्षेत्राधिकारी बाबूपुरवा बनाया गया तो उन्होंने दिनांक 11 मार्च 2020 को समय रात्रि तकरीबन 08 बजे अपने मेडिकल कॉलेज स्थित आवास पर बुलाया था जहां पर उन्होंने एसएसपी अनंत देव् तिवारी की मंशा जाहिर करते हुये स्पष्ट किया कि यदि जेल जाने से बचना चाहते हो तो 10 लाख का प्रबंध जल्द से जल्द करो। आलोक सिंह के क्रूर रवैये को देख मरता क्या न करता मझबूरन 50 हज़ार रुपये बतौर चढ़ावा आलोक सिंह को दे दिये और बाक़ी बची रक़म जुटाने के लिये वहा से वापस आ गये। कतिपय कारणों से हम बची हुई रकम का बंदोबस्त तय समय में नही कर सके जिसकी वजह से सतीश चंद सचान को इनामी भगोड़ा अपराधी घोषित कर दिया गया और घर से की गई गिरफ़्तारी को टाटमिल चौराहे से दर्शाकर जेल भेज दिया गया।*

*जानिये क्या है मैनुअल स्कैबेंजर्स रिहैबिलिटेशन एक्ट 2013* :-  

सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार देश के हर राज्य के प्रत्येक जिलों में मैनुवल सीवर सफाई की कुप्रथा को रोकने के लिये सतर्कता (मॉनिटरिंग) कमेटी का गठन किया गया। जिसका अध्यक्ष ज़िला मजिस्ट्रेट, सदस्य एसएसपी,क्षेत्राधिकारी पुलिस,कन्सर्निग मजिस्ट्रेट,महापालिका विभागाध्यक्ष, छवनी बोर्ड,रेलवे, 2 निर्वाचित जनप्रतिनिधि, 2 पुरुष 2 महिला सामाजिक कार्यरता सहित अनुसूचित जाति कल्याण का भार साधक अधिकारी सदस्य या सचिव होगा। यदि कोई एक्सीडेंट सीवर सफाई के दौरान होता है तो उपरोक्त एक्ट के अनुसार ही प्रथम दृष्ट्या सम्बंधित क्षेत्राधिकारी तथा कन्सर्निग मजिस्ट्रेट की ज़िम्मेदारी तय की जायेगी जिसमें लापरवाही पाये जाने पर उपरोक्त एक्ट की धारा 7 व धारा 9 के तहत अभियोग पंजिकृत कराते हुये कार्यवाही सुनिश्चित की जायेगी। यह कार्यवाही समस्त जातियों के सीवर सफाई कर्मचारियों पर लागू होगी। अनुसुचित जनजाति के सीवर सफ़ाई कर्मचारियों को विशेष लाभ दिलाये जाने के लिये SC/ST एक्ट 1889 की धारा 3(1)(10) की अतिरिक्त धारा अभियोग में जोड़ी जाएगी जिससे कि समाज कल्याण विभाग से लाभ पीड़ित परिवार प्राप्त कर सके।

"उपरोक्त प्रकरण में न तो सुप्रीम कोर्ट के आदेश की परवाह की गई और न सफाई कर्मचारी आयोग व राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के आदेश दिनांक 20 जून 2019 के अनुपालन में अपर जिला अधिकारी (ADM) द्वारा वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक कानपुर नगर तथा महाप्रबंधक गंगा प्रदूषण नियंत्रण ईकाई को संबोधित अति महत्वपूर्ण पत्र को भी उक्त विवेचना का हिस्सा विवेचक द्वारा नही बनाया गया।"

*DSP आलोक सिंह पर लगे आरोपों पर जब उनसे संपर्क किया गया तो उन्होंने चार्जसीट में हुई चूक को ऑफ कैमरे में स्वीकार किया लेकिन कैमरे पर कुछ भी बोलने से साफ़ इंकार कर दिया। विवेचक पर लग रहे गंभीर आरोपों पर जब कानपुर एसपी साउथ दीपक भूकर का पक्ष जानना चाहा तो उन्होंने कैमरा,मोबाइल,आदि मीडिया इक्यूपमेंट को ऑफिस के बाहर छोड़कर आने की शर्त पर बात करने को तो तैयार हुये लेकिन वर्जन देने से साफ़ इंकार कर दिया।*


अब आप आसानी से समझ सकते हैं कि आख़िर क्यों आम जनता का भरोसा पुलिसिया विवेचना से उठता जा रहा है ? आख़िर क्यों बहुमूल्य प्रशासनिक शक्तियों का दुरप्रयोग मातहत करते हैं ? आखिर क्यों अपने कर्त्तव्यों से विमुख हो जाते हैं प्रशासनिक अफसर ? आख़िर कब होगा पूर्ण न्याय ? यह वह सवाल हैं जिनका जवाब मिलना फिलहाल सम्भव दिखाई नही दे रहा। *हमारी इन्वेस्टिगेशन रिपोर्टिंग का मतलब न्याय की प्रथम सीढ़ी कहे जाने वाले जांच अधिकारियों को आइना दिखाना मात्र है जो अपने कर्तव्यों से विमुख होकर आर्थिक लाभ के लिये निर्दोष को दोषी और दोषी को निर्दोष साबित करने में जुट जाते हैं जिसका नतीज़ा कई बेगुनाह परिवारों की बर्बादी के रूप में अक़्सर सामने आता है।

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