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भिखारियों के हक पर कानपुर के अधिकारियों का डाका

*"भिखारियों के हक पर कानपुर के अधिकारियों का डाका" *भिक्षु गृह के नाम पर चलता रहा खेल* *29 वर्षों से भिक्षुक गृह के नाम पर काट रहे अधिकारी मलाई* *2 दशक से भिक्षुओं को मिलने वाला हक डकार रहे समाज कल्याण विभाग के अधिकारी* *कानपुर में भिक्षावृत्ति चरम पर* उत्तर प्रदेश की आर्थिक राजधानी के नाम से पहचाना जाने वाला शहर कानपुर अपनी आगोश में सब कुछ समेटे हुये है इस शहर में समाज के हर तबके के लिये बेसुमार जगह है लेकिन सरकारी मातहत अपने भ्रष्ट दाव पेचों से समाज के सबसे तुच्छ तबके भिक्षुओं (भिखारी) का भी हक़ डकार चुके हैं। कानपुर महानगर के दक्षिणी क्षेत्र स्थित नौबस्ता मछरिया चौराहे के समीप वर्ष 1979 में भिक्षु गृह का संचालन सुरु हुआ था शहर में भीख मांगने वालों को इस गृह में रखा जाता था इस भिक्षु गृह का उद्देश्य अन्य सुधार गृहों (जैसे बाल सुधार गृह,महिला सुधार गृह,नशा मुक्ति गृह आदि) की तर्ज पर किया जाता है जिससे भीख मांगने की प्रवृत्ति पर लगाम लग सके। इस भिक्षु गृह के संचालन का जिम्मा समाज कल्याण विभाग को उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा दिया गया था जिसके लिये सरकारी कर्मचारियों की नियुक्ति भी की गई थी जो वर्तमान में भी जारी है भिक्षु गृह को संचालित करने के लिये नियमानुसार समाज कल्याण विभाग से बजट भी आवंटित होता रहा है लेकिन इस बजट का बंदरबांट किया गया यह कहा जाये तो शायद गलत नही होगा क्योंकि वर्ष 1992 के बाद से कानपुर स्थित इस भिक्षु गृह में एक भी भिखारी को नही लाया गया या यूं कहें कि वर्ष 1992 में इस भिक्षु गृह के दरवाज़े पर ताला जड़ दिया गया था परंतु हैरानी की बात तो यह है कि ताला बंद इस भिक्षु गृह में अनवरत कर्मचारियों की तैनाती जारी रही है। भिक्षु गृह के चौकीदार का नाम सदलू है जिसकी सैलरी 35000 हज़ार रुपये है सदलू के अनुसार वह वर्ष 1997 में लखनऊ से तबादला पाकर कानपुर में आया था तब से कानपुर में ही तैनात है परंतु सदलू भिक्षु गृह जाता ही नही है क्योंकि जब से वह कानपुर आया है तब से इस भिक्षु गृह में ताला लगा हुआ है। *"शहर में भिखारी समाप्त हो चुके हैं या फिर भिखारियों के हक पर पिछले 2 दशकों से डाका डालकर समाज कल्याण विभाग के अधिकारी अपना पेट बढ़ा रहे हैं यह तो जांच का विषय है।"*

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