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"सरकारी कार्यालय की रिश्वतखोरी ने ली ख़ुद्दार नवयूवक की जान"

- रिश्वत न दे पाने की वजह से दे दी जान, - ख़ुद्दारी और ईमानदारी बनी जान देने की वजह, - अपने परिवार का भरण पोषण करने वाला एक लौता था युवक। सरकार भले ही लाख प्रयास कर ले लेकिन सरकारी कार्यालयों का हाल जस का तस है जिसका जीता जागता उदाहरण दे गया कानपुर का ख़ुद्दार नवजवान। कानपुर के विधनू का रहने वाला आशीष अपने परिवार का सबसे बड़ा बेटा था उसके कंधे पर अपने बुजुर्ग मा-बाप के अलावा अपनी छोटी बहन की भी जिम्मेदारी थी जिसे वह ख़ुद्दारी से निभाना चाहता था जिसके लिये उसने कुछ दिन पूर्व एक 2nd हैंड ऑटो भी खरीदी थी आशीष की मंशा थी कि वह ऑटो का हैवी लाइसेंस आरटीओ से बनवाकर सड़क पर ऑटो चलाकर अपने परिवार का भरण पोषण करेगा। लेकिन शायद उसे यह नही पता था कि इस समाज में सिर्फ़ मेहनत करना ही पर्याप्त नही है बल्कि अपने काम बनाने के लिये सरकारी कार्यालयों में चढ़ावा भी चढ़ाना पड़ता है जिसे हम सभी सिस्टम की भाषा में नजराना और शुद्ध देसी भाषा में रिश्वत के नाम से जानते हैं। आशीष अपना हैवी लाइसेंस बनवाने के लिये पिछले 2 महीनों से कानपुर RTO कार्यालय के चक्कर काट रहा था RTO के अधिकारी हैवी लाइसेंस बनाने के एवज़ में सरकारी फ़ीस के अतिरिक्त 12 हज़ार रुपयों की डिमांड कर रहे थे जिसे देने में आशीष असमर्थ था हालांकि आशीष ने RTO अधिकारियों से मन्नत कर यह तक कह दिया कि साहब मैं कमा कर आपका एक-एक पैसा चुका दूंगा लेकिन खनते हैं न कि "रिश्वत की दुकान में उधारी नही होती" बस फिर क्या था आशीष ख़ुद्दारी में RTO अधिकारियों के चक्कर काटता रहा और समय के साथ-साथ उसके ऊपर परिवार की जिम्मेदारियां हावी होती चली गई और आख़िरकार अपनी जिम्मेदारियों से हार कर एक ख़ुद्दार नव जवान ने अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली।जिसका जिक्र अब दिवंगत आशीष की माँ कर रही है। "सरकार भले ही सिस्टम के ऊपरी लेयर को चाक चौबंद कर ले लेकिन हक़ीक़त आज भी यही है कि ज़िला स्तर पर सरकारी कार्यालयों में बैठे कथित रिश्वतखोर अफ़सर आशीष जैसे ख़ुद्दार यूवक के परिवारों को आज भी तबाह करने से बाज़ नही आते।"

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