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मेयर प्रमिला पांडेय की मुहिम ने तोड़ दिया दम ?

मेयर प्रमिला पांडेय की मुहिम ने तोड़ दिया दम ? मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में स्थापित रहे मंदिरो के उद्धार की छेड़ी थी मुहिम ज्यादातर मंदिरो में बीतते समय और हिंदुओं के पालन के साथ हो गए थे क़ब्जे गली-गली घूमी दर-दर भटकी लेकिन सब कुछ हो गया टाय टाय फिस्स। कानपुर की मेयर प्रमिला पांडेय उर्फ़ अम्माजी ने शहर के मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में कभी स्थापित रहे मंदिरों को पुनः कब्जामुक्त कराने का जो सपना देखा था वह शायद अब सिर्फ़ ख्वाबों तक की सीमित रह गया है। कानपुर की अम्माजी के जरा इस बयान को ध्यान से सुनिए और समझिए जो यह बताने के लिए पर्याप्त है कि अम्माजी के मन में अपने धर्म और आस्था पर हुए कुठाराघात का कितना गहरा असर हुआ है। शहर की प्रथम नागरिक की कुर्सी पर आसीन अम्माजी ने अपना रुख़ स्पष्ट करने के बाद अपने कदमों को शहर के अतिसंवेदनशील मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र कहे जाने वाले चमनगंज, बेकनगंज की तरफ़ आगे बढ़ा दिया। अम्माजी के क़दम जैसे - जैसे आगे बढ़ रहे थे वैसे वैसे वह मंदिर जो कभी अपनी आस्था के लिए पहचाने जाते थे।वह आज अपने जख्मों को खुद ही कुरेद कुरेद कर अपना दर्द बयां करने लगे। इन भव्य मंदिरों में मूर्ति रूप में विराजमान कुछ एक कलाकृतियों को जरा गौर से देखिए। धार्मिक उन्माद और उपेक्षा की कहानियां यह कलाकृतियां हिंदू आस्था पर हुए बर्बरता का उदाहरण बिना कुछ कहे ही सनातनी हिंदुओं की तरह बड़ी ही खामोशी से पेश कर रही हैं। कानपुर शहर में आज जो क्षेत्र चमनगंज बेकनगंज के नाम से अतिसंवेदनशील मुस्लिम बाहुल्य माना जाता है वहा कभी बनिया समुदाय ही अग्रणी था बनिया समाज के लोगों में यह खासियत होती हैं कि वह अपने मोहल्ले के चंद घरों के मध्य उपासना हेतु अपने आराध्य का मंदिर जरूर बनवाते हैं। लेकिन जैसे जैसे समय बढ़ता गया बनिया समुदाय इन क्षेत्रों से पलायन करने लगा। और उनकी जगहों पर अल्प संख्यक का तमगा लिए मुस्लिम समुदाय स्थापित हो गया और तब के बने मंदिरों पर या तो अवैध कब्ज़ाकर मीट मुर्गे की दुकानें खोल दी गई या फिर उन्हें अपने क़ब्जे में ही गुपछुप ढंग से छिपाकर दुनिया की आखों से ओझल कर दीया गया। आस्था पर हुए अतिक्रण से कुंठित अम्माजी ने स्वयं उन क्षेत्रों का दौरा किया और अपने मंदिरो का हाल जानते हुए मौके पर जो भी मिला उसे जमकर लताड़ लगाई। जरा इन तस्वीरों पर गौर कीजिए अम्माजी के हांथ में ईंट है और वह उम्र के इस पड़ाव में ईंट से ठोकर मारकर अपने ईष्ट आराध्य को बंधन मुक्त कराने का पुरज़ोर प्रयास कर रही हैं। प्रमिला पांडेय ने जिस वक्त यह मुहिम चलाई मानो शहर का हर वह शख्स जो इन मंदिरों में हुए कब्जे का कसूरवार रहा कलछ उठा जिसकी बानगी यह अम्माजी की यह झड़प बयां कर रही है मुहिम के मध्य 3 जून को हुई हिंसा ने अम्माजी के जैसे हांथ ही बांध दिए हो। माहौल गरमा चुका था हिंसा की आग में शहर का अतिसंवेदनशील क्षेत्र चमनगंज बेकनगंज नई सड़क धधक चुका था। और धधकते शहर की ज्वाला में अम्माजी की मुहिम दम तोड़ चुकी थी अब कब यह मंदिर कब्ज़ा मुक्त होंगे यह तो हम नहीं बता सकते लेकिन हां इतना जरूर कहेंगे कि अम्माजी ने एक चिंगारी जरूर लगाई है जो कभी न कभी मशाल की तरह रौशनी बनकर इन कब्जायुक्त मंदिरो को पुनः अपने वास्तविक स्वरूप में लेकर आएगी।

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