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बागेश्वर धाम की यात्रा भक्तों के लिए जान लेवा है ?

बागेश्वर धाम (म. प्र.) - बागेश्वर धाम की यात्रा भक्तों के लिए जान लेवा है ? आस्था के लिए अपनी जिंदगी से खिलवाड़ क्या जायज है ? भक्तों को लोग अंध भक्त कहते हैं लेकिन यह तस्वीरे किसे अंधा कहती हैं जरा देखिए अर्जी लगने पर मर्जी जानकर मरहम लगाने वाले शास्त्री जी क्या कुछ कहेंगे ? बागेश्वर भक्त जब हो जायेंगे हादसे का शिकार तब करेगी सरकार इंतज़ाम ? भारत में आस्था का हमेशा से ही बोल बाला रहा है लेकिन आस्था जब जान लेवा बन जाए तो इसे सिर्फ आस्था नहीं कहा जा सकता। ज़रा इन तस्वीरों को गौर से देखिए यह भीड़ नौकरी या फिर सरकार से मुफ़्त राशन मांगने वालों की नहीं है बल्कि यह भीड़ उस दरबार में अर्जी लगाने वालों की है जहां हर मन्नत पूरी होने का दावा किया जाता है दावा सच्चा है या फिर झूठा इस तथ्य की हकीकत तो वही लोग बता सकते हैं जिन्होंने इस दरबार में अर्जी लगाकर अपनी मन्नते पूरी की हैं ऐसे भक्तों की तादात भी काफ़ी ज्यादा हैं लेकिन हम आज यहां उन तस्वीरों को आपके सामने लेकर आए हैं जिन्हें अब तक आपको किसी भी मीडिया हॉउस ने नहीं दिखया होगा क्योंकि भेड़ चाल का चलन भारतीय मीडिया के सर पर अक्सर चढ़कर बोलता रहा है। मीडिया ब्रेक टीम ने बागेश्वर धाम दरबार पहुंच रहे भक्तों के बीच जाकर उनके मन की बात तो सुनी ही लेकिन अर्जी लगने वाले मंगलवार के दिन हम उस रेलवे स्टेशन पर जा पहुचे जो इस धाम में आने वालों भक्तों के लिए एक बड़ा प्लेट फार्म है जी हां, हम बात कर रहे हैं बागेश्वर धाम के सबसे नजदीकी दुरिया गंज रेलवे स्टेशन की। जरा इस छोटे से रेलवे स्टेशन में उमड़ी भारी भीड़ को देखिए यह भीड़ रोजाना सफर करने वाले मुसाफिरों की नहीं है बल्कि उन भक्तों की है जो बागेश्वर धाम स्थित संकट मोचन धाम के पीठाधिश्वर धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री के दरबार में अपनी अर्जी लगाकर परेशानियों से निजात पाने का अनूठा आशिर्वाद लेने के बाद अपने घर जाने के लिए ट्रेन का इंतज़ार कर रहे थे इंतज़ार की घड़िया तेज़ रफ़्तार से आ रही ट्रेन ने खत्म कर दी। ट्रेन रुकते ही भक्त ट्रेन की तरफ तेज़ी से दौड़ पड़े। इस दौड़ में नौजवन बुजुर्ग महिलाए और बच्चे भी शामिल हैं किसी तरह ट्रेन के पास यह भक्तों की भीड़ पहुंच चुकी थी लेकिन अब जद्दोजहद ट्रेन में सवार होने की थी जिसके लिए भक्त संघर्ष करते हुए दिखाई दिए। ज़रा गौर से विचलित कर देने वाली इन तस्वीरों को देखिए ट्रेन के डब्बे का दरवाज़ा बंद है लेकिन भक्त दरवाज़े पर ही लटक हुए हैं कि शायद कोई बोगी का दरवाज़ा खोल दे। इस तस्वीर को देखिए जिसमें एक बच्चे को खिड़की से अंदर किए जाने का जानलेवा प्रयत्न किया जा रहा है। तीसरी तस्वीर यह बताने के लिए पर्याप्त है कि यह बागेश्वर भक्त इंसान नहीं हैं बल्कि उपयोग करने वाली वस्तु हैं क्योंकि यह खुद ब खुद अपने को लगेज मानकर सामान ढोने वाली बोगी में जा चढ़े हैं वह भी भेड़ बकरियों की तरह। इसी मध्य ट्रेन चल पडती है लेकिन जो जहा लटका था वही अटका है कोई भक्त ट्रेन छोड़ने को तैयार नहीं ऐसे में ट्रेन के ड्राइवर को एक बार फिर ट्रेन रोकनी पड़ी। अब भी धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री के प्रबल अनुयायि ट्रेन को छोड़ने को तैयार नहीं हुए अतः भीड़ को कंट्रोल करने के लिए या फिर यूं कहें कि अपनी धूर्तता को कैमरे में कैद होने से बचाने के लिए यह दुरिया गंज रेलवे स्टेशन में तैनात खाकी वाले साहब कैमरा बंद कराने पर उतारू हो गए। साहब शायद यह भूल गए कि यदि उन्होंने पहले ही रेलवे मंत्रालय को ऐसी स्थिती की रिपोर्ट भेज दी होती तो शायद बागेश्वर भक्तों को अपनी जान जोखिम में न डालनी पडती। एक बार फिर ट्रेन के पहियों ने हरकत की लेकिन खतरा ट्रेन के दरवाज़ों पर लटका था ऐसी विषम परिस्थितियों में ड्राइवर ने ट्रेन को रोकना ही उचित समझा लेकिन काफ़ी देर तक जब यात्री नहीं माने तो मझबूरी में ट्रेन को इसी स्थिती में आगे बढ़ाना पड़ा। ट्रेन के दरवाजे पर लटके दो चार भक्त चलती ट्रेन से उतर गए और बोले भक्ति में मौत का सफ़र उचित नहीं होता। सीधा सवाल सबसे पहले बागेश्वर धाम के पीठाधिश्वर धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री से है, महराज़ जी आप तो अर्जी लगाने वाले भक्तों की मर्जी से लेकर मर्ज़ तक बता देते हैं फिर आपको अपने भक्तों की यह व्यथा कैसे दिखाई नहीं दी। दूसरा सवाल भारतीय रेलवे से है कि क्या आपके जिम्मेदार अधिकारीयों ने आपको रिपोर्ट नहीं दी कि दुरिया गंज रेलवे स्टेशन पर बागेश्वर भक्त मंगलवार और शनिवार को लाखों की तादात में पहुंचते हैं जिसके लिए रेलवे प्रशासन की व्यवस्था अपंग है। अब अंतिम सवाल मध्य प्रदेश के CM शिवराज सिंह चौहान से है क्या आप अपने प्रदेश में आ रहे अन्य जनपदों के लोगों की सुरक्षा और सहूलियत के लिए स्थानीय प्रशासन को आदेशित भी नहीं कर सकते। हमारे देश की सबसे बड़ी विडंबना भी यही है कि सरकारे और प्रशासन बड़े हादसे होने के बाद ही जागता है लेकिन समय रहते होने वाले हादसों को रोकने के लिए कोई निर्णायक कदम नहीं उठता।

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